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रहस्यमाई चश्मा भाग - 17




तभी सुयश मीमांशा का इकलौता लाडला घुटनो के बल चलता मुस्कुराते हुए आये मीमांशा मुकुट को गोद मे उठाकर दूसरें आंगन में चली गयी लेकिन सिंद्धान्त के सोच पर पत्नी मीमांशा कि किसी बात का कोई प्रभाव पड़ा हो ऐसा नही था ।  सिंद्धान्त गम्भीर सोच में खोया ही था कि तभी सुखिया काका आये और चौधरी साहब के बुलाने का आदेश सुनाया सिंद्धान्त को अवसर मिला उसने सुखिया काका से पूछ ही लिया कि काका सुयश के क्या हाल है सुखिया काका ने बिना लाग लपेट बता दिया कि सुयश बाबू के कमरे में किसी का आना जाना माना है साफ सफाई अपने करते है और दिन भर खास पात इकठ्ठा करते है सिंद्धान्त बाबू हमारे पल्ले कुछ नही पड़त सिंद्धान्त का माथा ठनका आखिर उसके मन मे सुयश के प्रति घृणा ने घर बना लिया था उसे एक मौका ऐसा मिला जिसे वह चौधरी साहब को बता कर सुयश द्वारा चौधरी साम्राज्य के विरुद्ध किसी षड्यंत्र से अवगत कराएगा और सतर्क करेगा सिंद्धान्त सीधे चौधरी साहब के पास पहुंचा चौधरी साहब ने सिंद्धान्त से कहा बरखुरदार कभी कभी बिना बुलाए आ जाया करो तुम पर मैंने बहुत भरोसा किया है और जिम्मेदारीया भी बहुत दे रखी है कही तुम बहुत बोझिल तो महसूस नही कर रहे हो,,,,


 सिंद्धान्त बोला नही साहब सिंद्धान्त सदैव चौधरी साहब को साहब ही कहता था चौधरी साहब बोले तुम कलकत्ता और मुंबई की मिलो का मुआइना करके बताओ कि सब कुछ ठीक चल रहा है कही कोई गड़बड़ी तो नही है जो कुछ परिवर्तन की आवश्यकता हो वहां के मजदूरों कारिन्दों प्रबन्धको से बात करके एक अपनी विधिवत आख्या प्रस्तुत करो सिंद्धान्त बोला जी साहब फिर चौधरी साहब बोले मीमांशा और मुकुट तो खुश एव स्वस्थ है सिंद्धान्त बोला जी साहब चौधरी साहब पुनः बोले तुम्हारी अनुपस्थिति में जो लोग वहां देख रेख की जिम्मेदारी संभालते है उन्हें हुक्म दे दिया गया है और तुम्हे कुछ कहना हो तो बोलो,,,,,,,


 सिंद्धान्त बोला साहब सुखिया बोल रहा था कि सुयश के कमरे में कोई दाखिल नही हो सकता और दिन भर सुयश खास लता आदि इकठ्ठा करके कमरे में क्या करते है किसी को पता नही कही कोई अपशगुन न हो चौधरी साहब बोले ठीक है सिंद्धान्त अब आप जाकर अपना काम करें। सिंद्धान्त चला गया शाम हुई रात को सुयश और चौधरी साहब एक साथ पुनः भोजन करने बैठे चौधरी साहब ने सुयश से पूछा सुयश बेटे आपके कमरे में किसी का न जाना तो बात समझ मे आती है लेकिन खास पट्टी लता आदि क्यो एकत्र करते है यह बात समझ मे नही आ रही सुयश बोला बाबूजी कुछ दिन आप रुक जाईये अपने आप सारी बात समझ मे आ जायेगी!!!!



सर्वानद गिरी के पास जब से शुभा गयी थी तभी से सर्वानद गिरी ने उसे सुयश के साथ शिवस शब्द रटाने की बहुत कोशिश की लेकिन शुभा सुयश के अलावा कुछ भी नही बोलती सर्वानद जी प्रति दिन भोले शंकर कि आराधना के उपरांत शुभा के दुखों के निवारण के लिए प्रार्थाना अवश्य करते शुभा को शिवालय पर आए पूर्व एकवर्ष पांच माह हो चुके थे इस दौरान आदिवासी समाज का कोई न कोई सदस्य लगभग प्रति दिन शुभा जो अब उनके समाज की प्रिय बेटी जैसी थी को अवश्य देखने आते हाल चाल जानते और चले जाते शिवरात्रि का शुभ मंगल पर्व शिवालयों का महापर्व सदैव से रहा है चन्द्र कि रात्रि मनोरम छटा शिव पार्वती के विवाहोत्सव के पल प्रहर साक्षी बन अपनी भंगिमाओं से सम्पूर्ण ब्रह्मांड को आनंदित करते हुए उनके मनोकामनाओ को दृष्टि और पथ प्रदान करते है,,,,,,,,


शिव रात्रि का पर्व कांहांड़ी के वन प्रदेश के शिवालय के लिए कुछ नया ही संदेश लेकर आने वाला था सर्वानंद जी के साथ साथ और भी संत जो चार पांच कि संख्या में रहते थे शिवरात्रि के पूजन विधिविधान में व्यस्त थे शुभा एक किनारे बैठ कर सिर्फ सुयश सुयश ही जैसा कि उसकी प्रबृत्ति बन चुकी थी बोले जा रही थी लेकिन वह पूजन वंन्दन में कोई व्यवधान डालने का कोई प्रयास करती हो ऐसा नही था शांत चित्त सर्वानद जी एव अन्य संतो ने विधिविधान से शिवरात्रि महापर्व का पूजन किया जो प्रातः ब्रम्हबेला को शुभारंभ हुआ इस पूजन में आदिवासी समाज भी एकत्र था अपरान्ह सबको प्रसाद वितरण किया गया और पुनः कुछ देर बाद महाशिवरात्रि पर्व के दूसरे चरण का शुभारम्भ हुआ शिव विवाह एव बारात आदि सांध्य हुयी महाशिवरात्रि कि निशा में चंद्रमा की गति कलाएं एक आत्म संतुष्टि के जीवन को भाव विभोर करती हुई होती है भगवान शिव अपने ललाट पर चन्द्र को धारण करते है चंद्र सौम्यता शीतलता का प्रतिबिम्ब प्रतीक है सौम्यता शीतलता इसलिये की त्रिलोचन भगवान शिव के ललाट पर चन्द्र तो जटाओं में मोक्षदायिनी पतितपावनी निर्मल निर्झर गंगा का प्रवास है यदि सत्यम शिवम सुंदरम कि यथार्थता वर्तमान में ब्रह्मांडीय आकाश गंगा जो शिव प्रकृति प्राणि का आधार और विनाश दोनों ही है वह शुभ भी है और श्मशान भी है तो शिव मस्तक पर ब्रह्मांडीय सत्य का साक्ष्य है शीतल शौम्य चंद्रमा का एव पतित पावनी गंगा का साथ होना सर्वानद जी चंद्रमा कि बढ़ती गति के साथ शिव महात्म्य जीवन मोक्ष शिवपुराण के प्रसंग अपने शिष्यों को सुना रहे थे और आदि वासी समाज अपने परंपरागत वाद्यों के साथ उत्साह में मगन नृत्य आदिवासी गीतों को गा रहा था!

 महाशिवरात्रि की महा निशा का चन्द्र गतिमान था धीरे धीरे रात्रि ने अपने तीसरे प्रहर में प्रवेश किया शुभा सदा की तरह मंदिर के गर्व गृह में बैठी सारे दृश्यों को टक टकी लगाए देखे जा रही थी तभी एक शेर कही से दहाड़ता हुआ नृत्य करते आदिवासी समाज कि भीड़ के पास पहुंच गया आदिवासी समाज के लिए यह कोई नई बात नही थी आदि वासी समाज ने उसे जगह छोड़ दिया जिधर उंसे जाना हो जाये और पूरी तैयारी के साथ सारा समाज खड़ा हो गया कि यदि शेर आक्रामक होने की कोई भी कोशिश किया तो उसे मार दिया जाएगा तभी सर्वानद गिरी जी ने उसे ध्यान से देखा और बहुत तेज ठहाके लगाते हँसते हुए बोले संघर्ष है यह जब नवजात था तब इसकी मां मर गयी थी और इसको लोमड़ियों ने नोच नोच कर मार ही डाला था सुबह मैं नित्य क्रिया के लिये निकला ही था तब तक आपस मे इसे खाने के लिए आपस मे लड़ रही लोमड़ियों की आवाज मेरे कानो में गूंजी तब मैंने जाकर वहां देखा तो यह तड़फड़ा रहा था और मरने वाला ही था यह तो इतना नवजात था कि जीवन के लिए संघर्ष भी नही कर पा रहा था,,,,


 मैंने चिल्लाया तब मंदिर के अन्य साधु पहुंचे लोमड़ियों ने जब आदमियों की संख्या देखी भाग गए हम लोग इसे उठा कर यहाँ ले आये और इसका उपचार किया और तब तक पाला जब तक यह अपनी रक्षा ना कर सकने में सक्षम ना हो जाये इसके बाद इसे हम लोंगो ने जंगल के ऐसे भाग में छोड़ दिया जहाँ से वापस आना सम्भव ना हो और इसका नाम संघर्ष रखा था सभी संघर्ष को देख रहे थे पहले जैसा भय किसी के मन मे नही था!

 संघर्ष सीधे शिवालय के गर्भगृह में पहुंचा और भगवान शिव के शिवलिंग के पास बैठ गया शुभा को ना तो संघर्ष के विषय मे कोई जानकारी थी ना ही जीवन का लोभ या मृत्यु का भय वह वैसी ही बैठी रही संघर्ष उठा और शिवलिंग के चक्कर लगाने के बाद बहुत तेज दहाड़ लगाई अब शुभा दहशत से कांपने लगी और ज्यो ही भागने कि कोशिश में शिवालय के मुख्य द्वार कि ओर बढ़ी संघर्ष ने पुनः उसका रास्ता रोक लिया संघर्ष के कृत्यों का साक्षी पूरा आदिवासी एव संत समाज था लेकिन कर भी क्या सकता था शेर कितना भी पालतू क्यो ना हो उंसे छेड़ा नही जा सकता है!

संघर्ष ने जब शुभा का रास्ता रोका तुरंत शुभा शिवालय के गर्भ गृह में शिवलिंग कि तरफ़ मुड़ी और भयाक्रांत गिर पड़ी उसका सर शिवलिङ्ग पर था सर से रक्तस्राव होने लगा संघर्ष ने शुभा के पैर को चाटा पुनः वह सर्वानंद एव अन्य संतो के पैर चाटता आदिवासी मुखिया चन्दर के सामने झुकता चला गया उसके जाने के बाद सारा संत एव आदिवासी समाज शुभा के माथे पर घाव एव रक्तस्राव को बंद करने का जतन करने लगा।



जारी है 





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3 Comments

Abhilasha Deshpande

13-Aug-2023 10:23 PM

Nice part

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अदिति झा

17-Jul-2023 12:06 PM

Nice 👍🏼

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Gunjan Kamal

17-Jul-2023 01:46 AM

👏👌

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